2 मार्च सन 1930 कालाराम मंदिर प्रवेश सत्याग्रह



<img src="kalaram-mandir-satyagrah.jpg" alt="dr b r ambedkar does kalaram mandir satyahrah for untouchables in 2 march 1930"/>




On this day, on March 2, 1930, there was a movement launched by Dr. Babasaheb Ambedkar for the entry of untouchables into the temple. This satyagraha took place in the Kalaram temple of Nashik, because in India, where the upper castes among Hindus had the right to enter the temple from birth, but Hindu Dalits did not get this right. About 15 thousand Dalit people had participated in this Satyagraha. Most of whom belonged to the Mahar community and others were Mangs and Chamars, and there was a large number of women in it.

n this movement, along with Dr. Babasaheb, Dadasaheb Gaikwad, Sahastrabuddhe, Devrao Naik, D.V. The principal, Balasaheb Khare, was Swami Anand.

The Kalaram Mandir Satyagraha was Ambedkar's appeal to the untouchables and upper castes to ensure their rights.
Addressing the crowd, Babasaheb says , "Today we are going to enter the temple. Entering the temple will not solve our problems. Our questions are political, social, religious, economic and educational. Entering the Kalaram temple is an appeal to the Hindu mind. Now I question I am asking whether these same Hindus will give us their human rights through this Kalaram Mandir Satyagraha. This Satyagraha will check whether the Hindu mind is ready to accept us as human beings or not."

Then Dr. Babasaheb Ambedkar had said- “Hindus should also consider whether temple entry is the ultimate aim of raising the social status of Dalits in Hindu society?

If temple entry is the ultimate goal, then the people of the Depressed Classes will never support it, the ultimate goal of the Dalits is participation in power.

People from all over Maharashtra had come to the city of Nashik to participate in this Satyagraha, a meeting was organized on March 2, 1930 as the presidency of Dr. Ambedkar, decisions were made on how to do the Satyagraha in this meeting, of non-violence. This information was given to everyone, the next day on March 3, 1930, four groups of satyagrahis were formed, which were stationed at the four doors of the temple, the police and the temple priests protested the demand of the satyagrahis, all the doors of the temple Closed, the police had also maintained tight security in the entire temple, so that no untouchable could enter the temple, 

these satyagrahis were attacked by the upper caste Hindus of the city, stones were thrown and people were beaten with sticks, in this Dr. Babasaheb Ambedkar was also injured, in spite of being many times more than the Dalits, the upper caste Hindus, the Dalits did not commit violence by attacking the upper castes, because "Satyagraha has to be done with non-violence" Babasaheb's order was being followed by all the Dalits, this 

The movement lasted for about 6 years, but the door of Ram's temple was not opened by the Dalits, after that it was a Hindu In view of the immutability of religion, on October 13, 1935, KO Dr. 

Babasaheb Ambedkar announced to renounce Hinduism.

Salute to this great work and great memory of Dr. Babasaheb Ambedkar...

Hearty congratulations on 2nd March 1930 Nashik Kalaram Temple Entrance Satyagraha Anniversary

March 2 Kalaram Mandir Satyagraha - Congratulations on the liberation struggle!



मराठी अनुवाद


या दिवशी 2 मार्च 1930 रोजी डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांनी अस्पृश्यांना मंदिरात प्रवेश मिळावा यासाठी आंदोलन सुरू केले होते. नाशिकच्या काळाराम मंदिरात हा सत्याग्रह झाला, कारण भारतात हिंदूंमधील उच्चवर्णीयांना मंदिरात जन्मापासून प्रवेशाचा अधिकार होता, पण हिंदू दलितांना हा अधिकार मिळाला नाही. या सत्याग्रहात सुमारे 15 हजार दलित लोक सहभागी झाले होते. त्यापैकी बहुतेक महार समाजाचे होते आणि इतर मांग आणि चामर होते आणि त्यात महिलांची संख्या मोठी होती.

या आंदोलनात डॉ.बाबासाहेबांसह दादासाहेब गायकवाड, सहस्त्रबुद्धे, देवराव नाईक, डी.व्ही. प्राचार्य बाळासाहेब खरे, स्वामी आनंद होते.

काळाराम मंदिर सत्याग्रह म्हणजे आंबेडकरांनी अस्पृश्य आणि उच्चवर्णीयांना त्यांचे हक्क सुनिश्चित करण्याचे आवाहन केले.

जमावाला संबोधित करताना बाबासाहेब म्हणतात,"आज आपण मंदिरात प्रवेश करणार आहोत. मंदिरात प्रवेश केल्याने आमचे प्रश्न सुटणार नाहीत. आमचे प्रश्न राजकीय, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक आणि शैक्षणिक आहेत. काळाराम मंदिरात प्रवेश करणे हे हिंदू मनाला आवाहन आहे. आता मी प्रश्न विचारत आहे. हेच हिंदू या काळाराम मंदिर सत्याग्रहाद्वारे आपल्याला त्यांचे मानवी हक्क मिळवून देतील का, हिंदू मन आपल्याला माणूस म्हणून स्वीकारण्यास तयार आहे की नाही हे या सत्याग्रहाद्वारे तपासले जाईल.

तेव्हा डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर म्हणाले होते- “हिंदूंनीही विचार केला पाहिजे की, हिंदू समाजातील दलितांचा सामाजिक दर्जा उंचावणे हे मंदिर प्रवेश हे अंतिम उद्दिष्ट आहे का?

मंदिरप्रवेश हेच अंतिम ध्येय असेल, तर वंचित वर्गातील लोक त्याला कधीच साथ देणार नाहीत, दलितांचे अंतिम ध्येय सत्तेत सहभाग आहे.

या सत्याग्रहात सहभागी होण्यासाठी संपूर्ण महाराष्ट्रातील लोक नाशिक शहरात आले होते, 2 मार्च 1930 रोजी डॉ. आंबेडकर यांच्या अध्यक्षतेखाली एक बैठक आयोजित करण्यात आली होती, या बैठकीत सत्याग्रह कसा करायचा याबाबत निर्णय घेण्यात आला.

हिंसा. ही माहिती सर्वांना देण्यात आली, दुसऱ्या दिवशी 3 मार्च 1930 रोजी सत्याग्रहींचे चार गट तयार झाले, जे मंदिराच्या चार दरवाजांवर ठाण मांडून होते, पोलीस आणि मंदिराच्या पुजाऱ्यांनी सत्याग्रहींच्या मागणीला विरोध केला, मंदिराचे सर्व दरवाजे बंद, पोलिसांनीही संपूर्ण मंदिरात कडेकोट बंदोबस्त ठेवला होता, 

कोणीही अस्पृश्य मंदिरात जाऊ नये म्हणून या सत्याग्रहींवर शहरातील सवर्ण हिंदूंनी हल्ले केले, दगडफेक केली, लोकांना मारहाण करण्यात आली. लाठ्या, यात डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरही घायाळ झाले, 

दलितांपेक्षा कितीतरी पटीने जास्त, सवर्ण हिंदू असूनही, दलितांनी उच्चवर्णीयांवर हल्ले करून हिंसा केली नाही, कारण "सत्याग्रह करावा लागतो गैर- हिंसाचार" बाबासाहेबांच्या आदेशाचे पालन सर्व दलित करत होते, 

हे आंदोलन सुमारे 6 वर्षे चालले, पण राम मंदिराचे दार दलितांनी उघडले नाही, त्यानंतर ते हिंदू होते. 

धर्माची अपरिवर्तनीयता लक्षात घेऊन 13 ऑक्टोबर 1935 रोजी को. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांनी हिंदू धर्माचा त्याग करण्याची घोषणा केली.

डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर यांच्या या महान कार्याला आणि महान स्मृतीस विनम्र अभिवादन...

२ मार्च १९३० नाशिक काळाराम मंदिर प्रवेश सत्याग्रह वर्धापन दिनाच्या संर्वाना मंगलमय शुभेच्छा

२ मार्च काळाराम मंदिर सत्याग्रह - मानवमुक्ती लढ्यास विनम्र अभिवादन !



हिंदी अनुवाद


आज ही के दिन 2 मार्च सन 1930 को डा.बाबासाहब अम्बेडकर द्वारा अछूतों के मन्दिर प्रवेश के लिए चलाया गया आन्दोलन था | नासिक के कालाराम मन्दिर में यह सत्याग्रह हुआ था,क्योंकि भारत देश में हिन्दुओं में ऊंची जातियों को जहां जन्म से ही मन्दिर प्रवेश का अधिकार था लेकिन हिन्दू दलितों को यह अधिकार प्राप्त नहीं था | इस सत्याग्रह में करीब 15 हजार दलित लोग शामिल हुए थे | जिनमे ज्यादातर महार समुदाय के थे और अन्य मांग व चमार थे,तथा महिलाओं की इसमें भारी संख्या थी |

इस आन्दोलन में डा. बाबासाहब के साथ दादासाहब गायकवाड, सहस्त्रबुद्धे, देवराव नाईक, डी.व्ही. प्रधान, बालासाहब खरे, स्वामी आनंद थे | 

कलाराम मंदिर का सत्याग्रह अम्बेडकर द्वारा अछूतों और उच्च जातियों से उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने की अपील थी।

भीड़ को सम्बोधित करते हुए बाबासाहेब कहते हैं - "आज हम मंदिर में प्रवेश करने जा रहे हैं। मंदिर में प्रवेश करने से हमारी समस्याओं का समाधान नहीं होगा। हमारे प्रश्न राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और शैक्षिक हैं। कालाराम मंदिर में प्रवेश करना हिंदू मन की अपील है। अब मैं सवाल पूछ रहा हूं क्या यही हिंदू हमें इस कालाराम मंदिर सत्याग्रह के माध्यम से अपना मानवाधिकार देंगे। यह सत्याग्रह जांच करेगा कि हिंदू मन हमें इंसान के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार है या नहीं।"

तब डॉ॰बाबासाहब आम्बेडकर ने कहा था- “हिन्दू इस बात पर भी विचार करें कि क्या मन्दिर प्रवेश हिन्दू समाज में दलितों के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाने का अन्तिम उद्देश्य है ? 

यदि मन्दिर प्रवेश अन्तिम लक्ष्य है,तो दलित वर्गों के लोग उसका समर्थन कभी नहीं करेंगे,दलितों का अन्तिम लक्ष्य है सत्ता में भागीदारी | 

पूरे महाराष्ट भर से लोग इस सत्याग्रह में शामिल होने के लिए नाशिक शहर में आये थे, 2 मार्च 1930 को डा.आम्बेडकर की अध्यक्षता के रूप में एक सभा आयोजित की गई, इस सभा में सत्याग्रह किस प्रकार करना है इसपर निर्णय हुये,अहिंसा के मार्ग से सत्याग्रह करना हैं यह सूचना सबको दी गई,अगले दिन 3 मार्च 1930 को सत्याग्रहियों की चार टुकड़ियाँ बनाई गई, जो मन्दिर के चारों दरवाजो पर तैनात थी, पुलिस तथा मन्दिर के पुजारियों ने सत्याग्रहियों की मांग का विरोध करते हुए मन्दिर के सभी दरवाजे बन्द दिए,पुलिसों ने भी पूरे मन्दिर में कडी सुरक्षा बना रखी थी, ताकि कोई अछूत मन्दिर में प्रवेश न कर पाये,

शहर के सवर्ण हिन्दुओं ने इन सत्याग्रहियों पर हमला हुआ, पत्थर बरसाए गये तथा लाठियों से लोगो की पीटा गया,इसमें डा.बाबासाहब अम्बेडकर भी घायल हुए |

संख्या में दलित,सवर्ण हिन्दुओं से कई गुना अधिक होने बावजूद भी दलितों ने सवर्णों पर हमला कर हिंसा नहीं की,क्योंकि "अहिंसा से सत्याग्रह करना हैं " बाबासाहब के इस आदेश का पालन सभी दलित कर रहे थे,यह 

आंदोलन करीब 6 साल तक चला किंतु राम के मन्दिर का दरवाजा दलितों के नहीं खुला,

इसके बाद यह हिन्दु धर्म की अपरिवर्तनीयता को देखते हुए 13 अक्टूबर सन 1935 केओ डा.बाबासाहब अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म का त्याग करने घोषणा कर दी.

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के इस महान कार्य और महान स्मृति को नमन...

2 मार्च 1930 नासिक कलाराम मंदिर प्रवेश सत्याग्रह वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं...

2 मार्च कलाराम मंदिर सत्याग्रह - मानव मुक्ति संग्राम की हार्दिक मंगलकामनाये...













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